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चुकंदर की खेती के लिए भूमि प्रबंधन, उन्नत किस्में व मृदा और जलवायु

चुकंदर की खेती के लिए भूमि प्रबंधन, उन्नत किस्में व मृदा और जलवायु

भारत के अंदर अधिकतर लोग चुकंदर खाना काफी पसंद करते हैं। किसी को चुकंदर सलाद के रूप में तो किसी को जूस के रूप में चुकंदर काफी अच्छा लगता है। 

हालांकि, बहुत सारे लोग इसका जूस पीना भी काफी पसंद करते हैं। बतादें, कि चुकंदर में पोटेशियम, विटामिन सी, फोलेट, विटामिन बी9, मैंगनीज और मैग्नीशियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है। 

इसका सेवन करने से शरीर में रक्त की कमी नहीं होती है। यही कारण है, कि इसकी बाजार में मांग सदैव बरकरार बनी रहती है। अब ऐसे में यदि किसान भाई चुकंदर की खेती करते हैं, तो उनको एक शानदार और अच्छी कमाई आसानी से प्राप्त हो सकती है।

मुख्य बात यह है, कि चुकंदर औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इस वजह से इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के रोगों के उपचार में भी किया जाता है। साथ ही, इससे बहुत प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियां भी तैयार की जाती हैं। 

बाजार में इसका भाव हमेशा 30 से 40 रुपये किलो तक रहता है। अब ऐसी स्थिति में यदि किसान भाई चुकंदर की खेती करने की योजना बना रहे हैं, तो उनके लिए यह काफी अच्छी खबर है। यदि वैज्ञानिक विधि के माध्यम से चुकंदर की खेती की जाए, तो किसानों को बंपर पैदावार मिलेगी।

चुकंदर की सबसे लोकप्रिय व उन्नत किस्में कौन-सी हैं ?

बलुई दोमट मृदा में चुकंदर की खेती करने पर काफी बेहतरीन उपज मिलती है। इसकी खेती के लिए मृदा का पीएच मान 6 से 7 के मध्य उचित माना गया है। 

वहीं, गर्मी, बारिश और सर्दी किसी भी मौसम में इसकी आसानी से खेती की जा सकती है। यदि किसान भाई गर्मी के मौसम में चुकंदर की खेती करने की योजना बना रहे हैं, तो सर्वप्रथम अच्छी और बेहतरीन किस्मों का चयन करें। 

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अर्ली वंडर, मिस्त्र की क्रॉस्बी, डेट्रॉइट डार्क रेड, क्रिमसन ग्लोब, रूबी रानी, रोमनस्काया और एमएसएच 102 चुकंदर की सबसे लोकप्रिय किस्में हैं। इन किस्मों की खेती करने पर किसान को बंपर पैदावार हांसिल होती है। 

चुकंदर की बुवाई एवं भूमि प्रबंधन इस तरह करें 

चुकंदर की बुवाई करने से पूर्व खेत की कई बार जुताई की जाती है। उसके बाद 4 टन प्रति एकड़ की दर से खेत में गोबर की खाद डालें और पाटा लगाकर जमीन को एकसार कर दें। अब इसके बाद क्यारी बनाकर चुकंदर की बुवाई करें।

विशेष बात यह है, कि छिटकवां और मेड़ विधि से चकुंदर की बुवाई की जाती है। अगर आप छिटकवां विधि से चुकंदर की बुवाई कर रहे हैं, तो आपको एक एकड़ में 4 किलो बीज की आवश्यकता पड़ेगी। 

वहीं, यदि आप मेड़ विधि से बुवाई करते हैं तो किसान को कम बीज की आवश्यकता पड़ती है। मेड़ विधि में पहले 10 इंच ऊंची मेड़ बनाई जाती है। अब इसके बाद मेड़ पर 3-3 इंच की दूर पर बीजों को बोया जाता है। 

बुवाई के कितने दिन बाद फसल पूर्णतय तैयार हो जाती है ?

बतादें, कि चुकंदर एक कंदवर्गीय श्रेणी में आने वाली फसल है। इसलिए समय-समय पर इसकी निराई- गुड़ाई की जाती है। साथ ही, आवश्यकता के अनुरूप सिंचाई भी करनी पड़ती है। 

बुवाई करने के 120 दिन पश्चात फसल पककर तैयार हो जाती है। अगर आपने एक हेक्टेयर में खेती कर रखी है, तो 300 क्विंटल तक उपज मिलेगी। यदि 30 रुपये किलो के हिसाब से चुकंदर बेचते हैं, तो इससे आसानी से लाखों रुपये की आय होगी।

जानिए किस प्रकार घर पर ही मसूर की दाल से जैविक खाद तैयार करें

जानिए किस प्रकार घर पर ही मसूर की दाल से जैविक खाद तैयार करें

बागवानी में हम जिन खादों का इस्तेमाल करते हैं, उनमें जैविक खादों का अपना अहम महत्व होता है। बहुत सारी खादों को हम घर पर ही तैयार कर सकते हैं। आज हम आपको मसूर की दाल से निर्मित होने वाली खाद के विषय में बताने जा रहे हैं। आपको इस खाद को तैयार करने के लिए सिर्फ दो मुठ्ठी मसूर की दाल की आवश्यकता होती है। दरअसल, आप अपने घर के लगभग सभी गमलों में इसका प्रयोग कर सकते हैं। मसूर की दाल से खाद निर्मित किए जाते हैं। खाद अथवा उर्वरक पोधों के पोषण के लिए तो आवश्यक होने के साथ-साथ उनके विकास में भी मददगार साबित होती है। हम घर में बागवानी करते समय विभिन्न प्रकार की जैविक और अजैविक खादों का इस्तेमाल करते हैं। दरअसल, इस लेख में हम आपको बागवानी में इस्तेमाल होने वाली एक ऐसी खाद के विषय में बताएंगे, जिसे निर्मित करने में आपको किसी भी अतिरिक्त सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। साथ ही, घर में मौजूद सामग्रियों के जरिए से आप यह खाद घर पर ही बना सकते हैं। दरअसल, इस खाद को हम मसूर की दाल से निर्मित करते हैं। साथ ही, इसका इस्तेमाल हम घर की बागवानी वाले पौधों के लिए भी कर सकते हैं।

खाद तैयार करने की विधि

मसूर की दाल की बात की जाए तो इसमें वे समस्त पोषक तत्व विघमान होते हैं, जिनके चलते पौधों में विकास और वृद्धि को रफ्तार मिलती है। इसको तैयार करने के लिए आपको सबसे पहले दो मुठ्ठी दाल को तकरीबन आधा लीटर पानी में डाल लें। पानी में इस दाल को 4 से 5 घंटे तक रखें। यदि मौसम सर्दी का है, तो आप इसको रात भर भिगो कर रख सकते हैं।

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पानी का मिश्रण किस अनुपात में किया जाए

पौधों में इस खाद को डालने के लिए सर्व प्रथम पानी और दाल को अलग कर लेना है। आपको दाल के भिन्न किए गए पानी में 1:5 के अनुपात में पानी और मिला लेना है। इस पानी को पौधों में एक स्प्रे बोतल से छिड़काव के साथ में पौधों की मृदा में पानी को डाल देना है। यह पानी बहुत सारे पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जिसकी वजह से पौधों में होने वाले विकास में वृद्धि होती है। आपको इस बात का विशेष ख्याल रखना है, कि यह पानी आपको पौधों में एक माह में केवल एक बार ही देना है। पानी से केवल पौधों की मिट्टी की ऊपरी सतह भीगने तक ही सिंचाई करनी चाहिए।

किस प्रकार प्रयोग करें

किसान भाइयों यदि आप इस दाल के पानी से खाद तैयार करना चाहते हैं, तो आपको एक बार के इस्तेमाल के पश्चात उस दाल को फेंकना नहीं है। क्योंकि, एक बार के उपयोग के पश्चात भी इसके पोषक तत्व खत्म नहीं होते हैं। आप इस दाल का इस्तेमाल तीन बार तक कर सकते हैं। पौधों में इस खाद का इस्तेमाल पानी के तौर पर नहीं करना चाहिए। बतादें, कि आप इस दाल को महीन पीस लें। साथ ही, इसे पौधों की मिट्टी की ऊपरी परत पर ही मिला दें। आपको इसे मिलाने से पूर्व एक बात का खास ख्याल रखना होगा कि आप जिन पौधों में इस खाद को मिश्रित करने जा रहे हैं, उस मिट्टी की पहले गुड़ाई कर लें। इसके पश्चात ही इसका उपयोग करें।
गाजर की खेती से जुड़े महत्वपूर्ण कार्यों की विस्तृत जानकारी

गाजर की खेती से जुड़े महत्वपूर्ण कार्यों की विस्तृत जानकारी

गाजर की पैदावार कच्चे के रूप में सेवन करने के लिए किया जाता है। गाजर एक बेहद ही लोकप्रिय सब्जी फसल है। लोगों द्वारा इसके जड़ वाले हिस्से का उपयोग खाने के लिए किया जाता है। जड़ के ऊपरी हिस्से को पशुओ को खिलाने के लिए उपयोग में लाते हैं। इसकी कच्ची पत्तियों को भी सब्जी तैयार करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। गाजर के अंदर विभिन्न प्रकार के गुण विघमान होते हैं, जिस वजह से इसका उपयोग जूस, सलाद, अचार, मुरब्बा, सब्जी एवं गाजर के हलवे को अधिक मात्रा में बनाने के लिए करते हैं। यह भूख को बढ़ाने एवं गुर्दे के लिए भी बेहद फायदेमंद होती है। इसमें विटामिन ए की मात्रा सबसे ज्यादा उपस्थित होती है। इसके साथ ही इसमें विटामिन बी, डी, सी, ई, जी की भी पर्याप्त मात्रा मौजूद होती है। गाजर में बिटा-केरोटिन नामक तत्व उपस्थित होता है, जो कैंसर की रोकथाम में ज्यादा लाभकारी होता है। पहले गाजर केवल लाल रंग की होती थी। लेकिन वर्तमान समय में गाजर की विभिन्न उन्नत किस्में हैं, जिसमें पीले एवं हल्के काले रंग की भी गाजर पायी जाती है। भारत के लगभग समस्त क्षेत्रों में गाजर की पैदावार की जाती है।

गाजर की पैदावार से पहले खेत की तैयारी

गाजर का उत्पादन करने से पहले खेत की बेहतरीन ढ़ंग से गहरी जुताई कर दी जाती है। इससे खेत में उपस्थित पुरानी फसल के अवशेष पूर्णतय बर्बाद हो जाते हैं। जुताई के उपरांत खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है, इससे भूमि की मृदा नम हो जाती है। नम जमीन में रोटावेटर लगाकर दो से तीन बारी तिरछी जुताई कर दी जाती है। इससे खेत की मृदा में उपस्थित मिट्टी के ढेले टूट जाते हैं और मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। भुरभुरी मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को एकसार कर दिया जाता है।

गाजर के खेत में उवर्रक कितनी मात्रा में देना चाहिए

जैसा कि हम सब जानते हैं कि किसी भी फसल की बेहतरीन पैदावार के लिए खेत में समुचित मात्रा में उवर्रक देना आवश्यक होता है। इसके लिए खेत की पहली जुताई के उपरांत खेत में 30 गाड़ी तक पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के अनुरूप देना होता है। इसके अतिरिक्त खेत की अंतिम जुताई के समय रासायनिक खाद के तोर पर 30 KG पोटाश, 30 KG नाइट्रोजन की मात्रा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के अनुसार करना होता है। इससे उत्पादन काफी ज्यादा मात्रा में अर्जित होती है। ये भी पढ़े: गाजर का जडोंदा रोग एवं उनके उपाय

गाजर की खेती का समय, तरीका एवं बुवाई

गाजर के बीजों की बुवाई बीज के रूप में की जाती है। इसके लिए एकसार जमीन में बीजो का छिड़काव कर दिया जाता है। एक हेक्टेयर के खेत में लगभग 6 से 8 KG बीजों की जरूरत पड़ती है। इन बीजों को खेत में रोपने से पूर्व उन्हें उपचारित कर लें। खेत में बीजों को छिड़कने के उपरांत खेत की हल्की जुताई कर दी जाती है। इससे बीज खेत में कुछ गहराई में चला जाता है। इसके उपरांत हल के माध्यम से क्यारियों के रूप में मेड़ो को तैयार कर लिया जाता है। इसके पश्चात फसल में पानी लगा दिया जाता है। गाजर की एशियाई किस्मों को अगस्त से अक्टूबर माह के बीच लगाया जाता है। साथ ही, यूरोपीय किस्मों की बुवाई अक्टूबर से नवंबर महीने के बीच की जाती है।

गाजर फसल की सिंचाई कब की जाती है

गाजर की फसल की प्रथम सिंचाई बीज रोपाई के शीघ्र बाद कर दी जाती है। इसके पश्चात खेत में नमी स्थिर रखने के लिए शुरुआत में सप्ताह में दो बार सिंचाई की जाती है। वहीं, जब बीज जमीन से बाहर निकल आए तब उन्हें सप्ताह में एक बार पानी दें। एक माह के बाद जब बीज पौधा बनने लगता है, उस दौरान पौधों को कम पानी देना होता है। इसके उपरांत जब पौधे की जड़ें पूर्णतय लंबी हो जाये, तो पानी की मात्रा को बढ़ा देना होता है।

गाजर की फसल में खरपतवार नियंत्रण किस प्रकार किया जाता है

गाजर की फसल में खरपतवार पर काबू करना बेहद आवश्यक होता है। इसके लिए खेत की जुताई के समय ही खरपतवार नियंत्रण दवाइयों का उपयोग किया जाता है। इसके उपरांत भी जब खेत में खरपतवार नजर आए तो उन्हें निराई – गुड़ाई कर खेत से निकाल दें। इस दौरान अगर पौधों की जड़ें दिखाई देने लगें तो उन पर मिट्टी चढ़ा दी जाती है। ये भी पढ़े: आगामी रबी सीजन में इन प्रमुख फसलों का उत्पादन कर किसान अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं

गाजर की उपज एवं लाभ क्या-क्या होते हैं

गाजर की उम्दा किस्मों के आधार पर ज्यादा मात्रा में पैदावार प्राप्त की जा सकती है, जिससे किसान भाई एक हेक्टेयर के खेत से लगभग 300 से 350 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त कर लेते हैं। कुछ प्रजातियां ऐसी भी हैं, जिनसे सिर्फ 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार अर्जित हो पाती है। कम समयांतराल में उपज प्राप्त कर किसान भाई बेहतरीन मुनाफा भी कमा लेते हैं। गाजर का बाजारी भाव शुरुआत में काफी अच्छा होता है। यदि कृषक भाई ज्यादा उत्पादन प्राप्त कर गाजर को समुचित भाव पर बेच देते हैं, तो वह इसकी एक बार की फसल से 3 लाख तक की आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। गाजर की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद होती है।
इस तकनीक का प्रयोग कर बिना मुर्गीफार्म, मुर्गीपालक कमा सकते हैं बेहतर मुनाफा

इस तकनीक का प्रयोग कर बिना मुर्गीफार्म, मुर्गीपालक कमा सकते हैं बेहतर मुनाफा

अभी के समय में किसान खेती के साथ साथ अब पशुपालन में ज्यादा ध्यान दे रहे हैं और आपको जान कर हैरानी होगी कि आज के समय में किसानों के बीच पशु पालन में मुर्गी पालन सबसे ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है। 

लेकिन आज भी किसान इस बात से बहुत हैरान हैं कि इस व्यवसाय में काफी लागत है, जैसे की मुर्गी फार्म बनाने के लिए जमीन और पैसा। लेकिन आज इस लेख में जो मैं बताने जा रहा हूं उसको जान कर आप हैरान हो जाएंगे, 

अब आप कम लागत में भी अपने घर के पास बैकयार्ड में भी मुर्गी पालन कर सकते हैं और अच्छा मुनाफा कमा सकते है। यह किसानों के लिए काफी किफायती साबित हो रहा है।

अगर आप भी अभी तक परेशान थे कि मुर्गीपालन के लिए बहुत जगह और पैसे की आवश्यकता है, तो अब इस बात को दिमाग से निकाल दें। अब कम जगह में मुर्गी पालन कर भी कमा सकते हैं पैसा। 

अगर आपके घर के बगल में है खाली जगह, तो वहाँ पर आप मुर्गियों के लिए बेड़े बना सकते हैं और उसमें मुर्गी पालन कर सकते हैं।

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आपको यह भी बता दें की घर के आस पास जगह होने से घरेलू लोग भी आसानी से उसमे काम कर सकते हैं और इससे आपका मजदूरी भी बचेगा जिससे आपको मुनाफा होगा। 

लेकिन इन सब बातों के अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वह है मुर्गी के सही नस्लों को चुनना, जो आपके बेड़े में आसानी से रह सकें व उसको आसानी से पाला जा सके। 

गौरतलब है की पुरे भारत में मुर्गी के सैकड़ो प्रकार की नस्ल पाली जाती हैं। लेकिन आज कल जो सबसे प्रचलित और सबसे जयादा मुनाफा देने वाली नस्ल कड़कनाथ, केरी श्याम, स्वरनाथ, ग्रामप्रिये, वनराज आदि हैं। 

अगर आप भी मुर्गी पालन से कमाना चाहते हैं तो इसी सब नस्ल के मुर्गी का पालन करें। आपको यह भी बता दें की मुर्गीपालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार के तरफ से बहुत सारे ऋण की भी सुविधा उपलब्ध है। 

साथ ही आपको यह जान कर हैरानी होगी की ये जो ऋण है उसका दर भी बहुत कम है और उसमे अनेक प्रकार के सब्सिडी की भी सुविधा सरकार के तरफ से किसानों को दी जा रही है।

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क्या क्या है सब्सिडी

आपको बता दें की मुर्गी पालन पे नेशनल लाइवस्टॉक मिशन स्कीम के तहत किसानो को 50 प्रतिशत तक का अनुदान दिया जाता है। इसके आलावा नाबार्ड के द्वारा भी मुर्गी पालन के लिए किसानों को बेहतर सब्सिडी की सुविधा दी जाती है।

इस सब्सिडी के अंतर्गत मुर्गी के स्वास्थ से लेकर मुर्गीफार्म के सुरक्षा तक पर सरकार के द्वारा बेहतर सब्सिडी दी जाती है।

कम लागत में बम्पर मुनाफा कम सकते हैं किसान

उपरोक्त सभी नस्लों के अलावा देसी मुर्गीपालन पर भी किसानों को काफी ध्यान है, जिसमें किसान देसी मुर्गी के एक चूजे को लगभग 50 रूपए में खरीदते हैं और वह मुर्गी साल भर बाद लगभग 200 अंडे देती है। 

अभी एक अंडे का कीमत कम से कम 7 रूपए है, अगर किसान इस तरीके से अच्छी खासी संख्या में मुर्गीपालन करते हैं, तो सालाना लाखों कमा सकते हैं। जब वह अंडा देना बंद कर दे तो इसके मांस को बेचकर भी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

किसानों को परंपरागत खेती में लगातार नुकसान होता आ रहा है, जिसके कारण जहाँ किसानों में आत्महत्या की प्रवृति बढ़ रही है, वहीं किसान खेती से विमुख भी होते जा रहे हैं. इसको लेकर सरकार भी चिंतित है. लगातार खेती में नुकसान के कारण किसानों का खेती से मोहभंग होना स्वभाविक है, इसी के कारण सरकार आर्थिक तौर पर मदद करने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है. सरकार की तरफ से किसानों को खेती में सहफसली तकनीक (multiple cropping or multicropping or intercropping) अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. विशेषज्ञों की मानें, तो ऐसा करने से जमीन की उत्पादकता बढ़ती है, साथ ही एकल फसली व्यवस्था या मोनोक्रॉपिंग (Monocropping) तकनीक की खेती के मुकाबले मुनाफा भी दोगुना हो जाता है.


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सहफसली खेती के फायदे

परंपरागत खेती में किसान खरीफ और रवि के मौसम में एक ही फसल लगा पाते हैं. किसानों को एक फसल की ही कीमत मिलती है. जो मुनाफा होता है, उसी में उनकी मेहनत और कृषि लागत भी होता है. जबकि, सहफसली तकनीक में किसान मुख्य फसल के साथ अन्य फसल भी लगाते हैं. स्वाभाविक है, उन्हें जब दो या अधिक फसल एक ही मौसम में मिलेगा, तो आमदनी भी ज्यादा होगी. किसानों के लिए सहफसली खेती काफी फायदेमंद होता है. कृषि वैज्ञानिक लंबी अवधि के पौधे के साथ ही छोटी अवधि के पौधों को लगाने का प्रयोग करने की सलाह किसानों को देते हैं. किसानों को सहफसली खेती करनी चाहिए, ऐसा करने से मुख्य फसल के साथ-साथ अन्य फसलों का भी मुनाफा मिलता है, जिससे आमदनी दुगुनी हो सकती है.


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धान की फसल के साथ लगाएं कौन सा पौधा

सहफसली तकनीक के बारे में कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर दयाशंकर श्रीवास्तव सलाह देते हैं, कि धान की खेती करने वाले किसानों को खेत के मेड़ पर नेपियर घास उगाना चाहिए. इसके अलावा उसके बगल में कोलस पौधों को लगाना चाहिए. नेपियर घास पशुपालकों के लिए पशु आहार के रूप में दिया जाता है, जिससे दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ता है और उसका लाभ पशुपालकों को मिलता है, वहीं घास की अच्छी कीमत भी प्राप्त की जा सकती है. बाजार में भी इसकी अच्छी कीमत मिलती है.


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गन्ना, मक्की, अरहर और सूरजमुखी के साथ लगाएं ये फसल

पंजाब हरियाणा और उत्तर भारत समेत कई राज्यों में किसानों के बीच आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है और इसका कारण लगातार खेती में नुकसान बताया जाता है. इसका कारण यह भी है की फसल विविधीकरण नहीं अपनाने के कारण जमीन की उत्पादकता भी घटती है और साथ हीं भूजल स्तर भी नीचे गिर जाता है. ऐसे में किसानों के सामने सहफसली खेती एक बढ़िया विकल्प बन सकता है. इस विषय पर दयाशंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि सितंबर से गन्ने की बुवाई की शुरुआत हो जाएगी. गन्ना एक लंबी अवधि वाला फसल है. इसके हर पौधों के बीच में खाली जगह होता है. ऐसे में किसान पौधों के बीच में लहसुन, हल्दी, अदरक और मेथी जैसे फसलों को लगा सकते हैं. इन सबके अलावा मक्का के फसल के साथ दलहन और तिलहन की फसलों को लगाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. सूरजमुखी और अरहर की खेती के साथ भी सहफसली तकनीक को अपनाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. कृषि वैज्ञानिक सह्फसली खेती के साथ-साथ इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी ‘एकीकृत कृषि प्रणाली’ की भी सलाह देते हैं. इसके तहत खेतों के बगल में मुर्गी पालन, मछली पालन आदि का भी उत्पादन और व्यवसाय किया जा सकता है, ऐसा करने से कम जगह में खेती से भी बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है.
पीएम किसान सम्मान निधि योजना का लाभ क्या पति पत्नी दोनों को मिलेंगे

पीएम किसान सम्मान निधि योजना का लाभ क्या पति पत्नी दोनों को मिलेंगे

पीएम किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत किसानों को प्रति वर्ष ₹6000 मुहैया कराया जाता है। यह ₹6000 रुपए तीन किस्तों में किसानों को कृषि के कार्य करने हेतु दिया जाता है, जिससे किसानों को कृषि कार्य हेतु आर्थिक सहायता मिलती है। कुछ महीनों से यह योजना काफी चर्चा में इसलिए है क्योंकि व्यापक पैमाने पर अपात्र किसान इस योजना का लाभ लेते पाए गए हुए हैं। बात अगर उत्तर प्रदेश राज्य की करें तो लगभग 21 लाख अपात्र किसान इस महत्वकांक्षी योजना का लाभ ले रहे थे, जिसको लेकर सरकार ने कड़ा निर्देश जारी किया था और पैसे की रिकवरी के लिए भी कड़े कदम उठाए थे। अमूमन हर राज्य का लगभग इसी तरह का हाल है, हर राज्य में व्यापक पैमाने पर इस महत्वकांक्षी योजना में गड़बड़ी देखने और सुनने को मिल रही है, जिसको लेकर सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण गाइडलाइंस जारी किए हैं। इस योजना में बहुत सारे ऐसे मामले भी हैं, जिसमें पति और पत्नी दोनों इस योजना का लाभ ले रहे थे, जिसको लेकर बहुत सारे अड़चन थे कि क्या पति और पत्नी दोनों पीएम किसान सम्मान निधि योजना का लाभ ले सकते हैं ? सरकार के द्वारा जारी गाइडलाइंस में यह साफ तौर पर कहा गया है कि इस योजना का लाभ पति और पत्नी दोनों नहीं ले सकते हैं। ऐसा करने वाले इस योजना से वंचित हो जाएंगे और उन्हें अपात्र घोषित कर दिया जाएगा। अगर कोई भी व्यक्ति इस तरह का कार्य करता है, तो सरकार उसे फर्जी साबित करते हुए योजना के अंतर्गत उठाए गए पैसों की रिकवरी करेगी। जब से इस योजना में गड़बड़ी हुई है तब से सरकार ने सख्त कदम उठाए हैं और कुछ गाइडलाइंस जारी किए हैं, जिसमें यह साफ तौर पर कहा गया है कि पति और पत्नी दोनों इस योजना का लाभ नहीं उठा सकते हैं। वहीं अगर पति और पत्नी दोनों में से कोई एक भी इनकम टैक्स को पार करता है, तो भी वह इस योजना का लाभ उठाने से वंचित रह जाएंगे। वैसे किसान जो दूसरे के खेतों में खेती करते हैं, वह भी इस योजना का लाभ नहीं उठा सकते हैं। साथ ही साथ इस तरह के किसान जो इनकम टैक्स पार करते हैं वह भी इस योजना का लाभ नहीं उठा सकते हैं। कोई व्यक्ति अगर संवैधानिक पद पर विराजमान है तो वह भी इस योजना का लाभ नहीं उठा सकता है। इस योजना का लाभ लेने के लिए लैंड का ओनरशिप होना अनिवार्य है। किसान परिवार से सिर्फ एक ही व्यक्ति इस योजना का लाभ लेने के लिए रजिस्ट्रेशन कर सकता है।


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पीएम किसान सम्मान निधि योजना का किसे मिल सकता है लाभ

इस योजना का लाभ मुख्य तौर पर उन गरीब किसानों के लिए है जिनके पास 2 हेक्टेयर से ज्यादा की जमीन नहीं है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीब किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करना है। अगर कोई किसान किसी सरकारी पेंशन इस स्कीम का लाभ उठा रहा है, तो वह भी इस योजना का लाभ नहीं ले सकता है और अगर कोई किसान अपनी खेती की जमीन का उपयोग कृषि के कार्य को छोड़कर किसी अन्य कार्य करने के लिए कर रहा है, तो वह भी किसान इस योजना का लाभ लेने से वंचित रह जाएगा।

17 अक्टूबर को मिल चुकी है 12वीं किस्त की रकम

इस योजना की शुरुआत केंद्र सरकार के द्वारा वर्ष 2019 में की गई थी। दिवाली से पहले ही 17 अक्टूबर को किसानों के खाते में 12वीं किस्त के ₹2000, केंद्र सरकार के द्वारा दिवाली और महापर्व छठ को ध्यान में रखते हुए भेज दिया गया हुआ है। लेकिन कुछ किसान ऐसे भी हैं जिनके खाते में 12वीं किस्त का पैसा अभी तक नहीं पहुंच पाया है, जिसका मुख्य कारण ईकेवाईसी का नहीं होना हो सकता है। लेकिन वैसे किसान जो ईकेवाईसी करा लिए हैं फिर भी उनके खाते में 12वीं किस्त का पैसा नहीं पहुंचा है, तो इसके पीछे लैंड सीडिंग एक बड़ी वजह हो सकती है। केंद्र सरकार के द्वारा योजना में फर्जीवाड़े को रोकने के लिए बहुत हैं कड़े निर्देश तथा सख्ती बढ़ती गई है। इस योजना का लाभ लेने वाले किसानों के लिए ईकेवाईसी का कराना अनिवार्य कर दिया गया है। ईकेवाईसी के आधार पर ही किसान पात्र है या अपात्र है, इसका पता किया जा सकता है और इसी को आधार मानकर किसान सम्मान निधि योजना का किस्त भेजा जा रहा है। वहीं अगर 12वीं किस्त के पैसे के बारे में बात करें तो यह पैसा किसानों के खाते में 30 नवंबर तक आते रहेगा। ऐसे में जो किसान ने लैंड सीडिंग नहीं कराया है, उन्हें अपने नजदीकी कृषि केंद्र पर जाकर अपना डॉक्यूमेंट अपडेट और वेरिफिकेशन करा लेना चाहिए ताकि उनके खाते में 12वीं किस्त की राशि 30 नवंबर तक पहुंच सके।
इतने हजार रुपये तक बढ़ सकते हैं गेंहू के दाम, आम लोगों का बिगड़ सकता है बजट

इतने हजार रुपये तक बढ़ सकते हैं गेंहू के दाम, आम लोगों का बिगड़ सकता है बजट

मई माह में निर्यात को नियंत्रित करने के उपरांत से स्थानीय गेहूं के भाव तकरीबन 28 प्रतिशत तक बढ़ता हुआ देखा गया है। मंगलवार को गेहूं के भाव 26,785 रुपये प्रति टन था। नवीन सीजन में गेहूं की पैदावार में सामान्य स्तर तक की वृध्दि हो होगी, परंतु अप्रैल माह से नवीन सीजन की आपूर्ति में तीव्रता आने तक भाव ऊँचा ही रहेगा। नव वर्ष में आम लोगों लायक कोई खाश खुशखबरी नहीं है। भारत के लोगों का बजट जनवरी के माह में खराब होने की आशंका है। इसकी मुख्य वजह है, जनवरी माह में गेहूं के भाव, में 2 हजार रुपए प्रति टन की वृध्दि होना है। विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत का गेहूं भंडार दिसंबर के माह में 6 वर्ष के निचले स्तर पर पहुंच गया है, एवं आगामी दिनों में कोई नवीन आपूर्ति होने की संभावना नहीं है। इसकी वजह से गेहूं के भावों में अधिक वृध्दि देखने को मिल सकती है।

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6 वर्षों में किस स्तर पर है गेहूं भंडार

दिसंबर हेतु सरकारी गोदामों में भंडारण करने के लिए भारतीय गेहूं भंडार छह वर्षों में सर्वाधिक कम हो गया है। इसकी वजह बढ़ती मांग एवं कम होते भंडारण के कारण से मूल्यों में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गईं। इस माह के आरंभ में भंडार में गेहूं का भंडारण कुल १९ मिलियन टन था, जो 1 दिसंबर, 2021 को 37.85 मिलियन टन था। दिसंबर हेतु मौजूदा स्टॉक 2016 के उपरांत बहुत घटा है, जब 2014 और 2015 में बैक-टू-बैक सूखे की वजह से गेहूं की पैदावार कम हो गयी थी। भंडारण में गिरावट 16.5 मिलियन टन तक आ गई थी।

2 मिलियन टन से ज्यादा नहीं

मुंबई में उपस्थित एक डीलर ने पत्रकारों को बताया है, कि नवीन फसल की आपूर्ति 4 माह के उपरांत ही आरंभ होगी। मूल्यों को नियंत्रित रखना सरकार के लिए हर माह कठिन होता जा रहा है। उनका कहना है, कि मूल्यों को कम करने हेतु सरकार एक माह में 2 मिलियन टन से ज्यादा जारी नहीं कर पायेगी। बाजार को अधिक ज्यादा की आवश्यकता है, क्योंकि किसानों की आपूर्ति तकरीबन समाप्त हो गई है एवं व्यापारी धीरे-धीरे भंडारण जारी कर रहे हैं।

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फिलहाल रिकॉर्ड स्तर पर मूल्य

भारतीय खाद्य निगम के आंकड़ों के मुताबिक, नवंबर माह में सरकारी भंडार तकरीबन 2 मिलियन टन कम हो गया है। विश्व का दूसरे सर्वोच्च अनाज उत्पादक देश भारत में मई में निर्यात पर रोक लगाने के बावजूद देश में गेहूं के भावों में तीव्रता आई है। क्योंकि फसल की पैदावार में आकस्मिक घटोत्तरी आई थी। मई में निर्यात पर रोक के उपरांत से क्षेत्रीय गेहूं के भाव करीब 28 प्रतिशत तक बढ़ते हुए दिखाई दिए हैं। मंगलवार को गेहूं का भाव 26,785 रुपये प्रति टन पर थे। नई दिल्ली के एक व्यापारी ने कहा है, कि नवीन सीजन में गेहूं की पैदावार में सामान्य स्तर तक की वृद्धि होगी। परंतु अप्रैल से नए सीजन की आपूर्ति में तेजी आने तक मूल्यों में उछाल बना रहेगा।
अलग अलग राज्यों में खेती लायक जमीन खरीदने की अलग अलग सीमा निर्धारित की गई हैं

अलग अलग राज्यों में खेती लायक जमीन खरीदने की अलग अलग सीमा निर्धारित की गई हैं

जमीन खरीदने के लिए समस्त राज्यों में अलग-अलग नियम हैं। ज्यादातर राज्यों ने जमीन की खरीद पर सीमा निर्धारित कर रखी है। परंतु, गैर कृषि योग्य जमीन को लेकर इस तरह का कोई कानून नहीं है। यदि आप खेती के लायक जमीन की खरीद पर अपना धन निवेश करते हैं, तो एक समय के उपरांत आपको काफी अच्छा रिटर्न मिलेगा। सोना यानी गोल्ड के उपरांत खेती लायक भूमि की खरीद-बिक्री ही एक ऐसा व्यवसाय है, जिसमें पैसा निवेश करने के उपरांत कभी भी घाटा नहीं होता है। वक्त के साथ-साथ भूमि की कीमत भी बढ़ती चली जाती है। मुख्य बात यह है, कि अगर आप सड़क, हाइवे, रेलवे स्टेशन एवं एयरपोर्ट के आसपास जमीन खरीदते हैं, तो आपका कई गुना मुनाफा बढ़ जाता है। इन जगहों पर भूमि का भाव मात्र कुछ वर्षों में ही कई गुना बढ़ जाता है। परंतु, बहुत से जमीन खरीदारों को राज्यों में बने कानूनों से निपटना पड़ता है।

भारत में 66 % सिविल मुकदमे भूमि व संपत्ति से जुड़े 20 वर्ष से लंबित पड़े हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि सभी राज्यों में खेती लायक भूमि को लेकर भिन्न-भिन्न कानून हैं। इन कानूनों के चलते कई बार खरीदारों को बेहद दिक्कत का सामना करना पड़ता है। बहुत बार मामला अदालत तक पहुंच जाता है। भारत में तकरीबन 66% प्रतिशत सिविल मुकदमे जमीन और सपंत्ति विवाद से ही जुड़े हुए हैं। इनमें से बहुत सारे मुकदमे 20 साल से भी ज्यादा समय से कोर्ट में लंबित हैं। परंतु, क्या आप जानते हैं कि भारत में खेती लायक जमीन की खरीद को लेकर एक सीमा निर्धारित की गई है। इस निर्धारित सीमा से अधिक आप जमीन की खरीद नहीं कर सकते हैं।

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इस राज्य में 15 एकड़ तक ही भूमि की खरीदारी की जा सकती है

जमीन की खरीद के लिए समस्त राज्यों के भिन्न-भिन्न नियम हैं। ज्यादातर राज्यों ने भूमि की खरीद पर सीमा निर्धारित की है। परंतु, गैर कृषि लायक जमीन को लेकर इस तरह का कोई कानून नहीं है। बात यदि केरल की करें तो यहां पर लैंड अमेंडमेंट एक्ट 1963 के अंतर्गत एक अविवाहित व्यक्ति 7.5 एकड़ से ज्यादा भूमि नहीं खरीद सकता है। उसी प्रकार 5 सदस्यों वाला परिवार 15 एकड़ तक ही जमीन की खरीदारी कर सकता है।

उत्तर प्रदेश में किसान कितने एकड़ भूमि खरीद सकते हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 12.5 एकड़ से अधिक खेती लायक जमीन कोई भी नहीं खरीद सकता है। मुख्य बात यह है, कि गुजरात में कृषि योग्य भूमि केवल किसान ही खरीद सकते हैं। बतादें, कि भारत में एनआरआई अथवा ओवरसीज सिटीजन खेती योग्य भूमि खरीद नहीं सकते हैं।

कर्नाटक और महाराष्ट्र में एक जैसा नियम लागू है

साथ ही, महाराष्ट्र में खेती लायक जमीन को लेकर अलग ही कानून है। यहां पर खेती लायक जमीन सिर्फ वही खरीद सकता है, जो स्वयं खेती करता हो या उसके पास पहले से खेती लायक जमीन हो। यहां पर आप 54 एकड़ से ज्यादा भूमि नहीं खरीद सकते हैं। इसी प्रकार से पश्चिम बंगाल में कृषि लायक जमीन के लिए अधिकतम खरीद सीमा 24.5 एकड़ तय की गई है। इसी तरह हिमाचल प्रदेश ने अपने यहां जमीन खरीद हेतु 32 एकड़ अधिकतम सीमा निर्धारित कर रखी है। वहीं, कर्नाटक में यह सीमा 54 एकड़ है। मुख्य बात यह है, कि कर्नाटक के अंदर भी महाराष्ट्र वाला ही नियम लागू है।
सब्जियों की बढ़ती कीमतों के साथ साथ अब दूध भी बिगड़ेगा रसोई का बजट

सब्जियों की बढ़ती कीमतों के साथ साथ अब दूध भी बिगड़ेगा रसोई का बजट

तकरीबन प्रति वर्ष दूध की कीमतों में इजाफा होता है। विशेष कर विशेष 12 साल में दूध के दाम 57 प्रतिशत बढ़े हैं। परंतु, कीमतों में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी साल 2022 के दौरान हुई है।

सब्जियों के साथ साथ दूध के बढ़ते दाम

महंगाई का भार आम आदमी के ऊपर से कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। बतादें, कि हरी सब्जी, दाल, चावल एवं मसालों के उपरांत फिलहाल दूध भी रसोई का बजट खराब करने वाला है। एक अगस्त से कर्नाटक में लोगों के लिए दूध खरीदना काफी महंगा हो जाएगा। कर्नाटक सरकार ने नंदिनी दूध की कीमत में 3 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से इजाफा करने का निर्णय लिया है। मुख्य बात यह है, कि बढ़ी हुईं कीमतें 1 अगस्त से लागू की जाऐंगी। हालांकि, कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (केएमएफ) ने भी
दूध के दाम बढ़ाने को लेकर सरकार से मांग की थी। उसने कीमतों में 5 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बढ़ोतरी करने की मांग की थी।

कर्नाटक में अन्य राज्यों के मुकाबले दूध का रेट सस्ता है

दूध में बढ़ोत्तरी के बाद भी कर्नाटक में अन्य राज्यों की तुलना में दूध का भाव सस्ता ही रहेगा। बतादें, कि कर्नाटक में दूध की शुरूआती कीमत 39 रुपए प्रति लीटर है। वहीं, आंध्र प्रदेश में दूध 56 रुपये लीटर बिकता है। इसी तरह से तमिलनाडु में 44 रुपये तो केरल में की स्टार्टिंग कीमत 50 रुपये लीटर है। लेकिन, दिल्ली, गुजरात एवं महाराष्ट्र में टोंड दूध 54 रुपये प्रति लीटर पर बिकता है।

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विगत वर्ष प्रतिदिन 94 लाख लीटर दूध खरीदा जाता था

खबरों के अनुसार नंदिनी दूध की कीमतों में वृद्धि का प्रभाव दूसरे ब्रांडों पर भी पड़ सकता है। देखा-देखी दूसरे राज्य में दूसरी डेयरी कंपनियां भी दूध की कीमतों में वृद्धि कर सकती हैं। इससे इस महंगाई में जनता का बजट और डगमगा जाएगा। हालांकि, केएमएफ अधिकारियों ने बताया है कि दूध की खरीद में पिछले साल की तुलना में भारी गिरावट दर्ज की गई है। विगत वर्ष प्रति दिन 94 लाख लीटर दूध खरीदा जाता था, जो अब घटकर 86 लाख लीटर पर पहुंच चुका है। उनका कहना है, कि किसान अत्यधिक कीमत मिलने के चलते निजी कंपनियों के हाथों दूध बेच रहे हैं। इससे दूध की किल्लत हो गई है। यही वजह है, कि दूध की कीमतों में वृद्धि करने का फैसला लिया गया।

कंपनियां भी कीमतों में इजाफा कर रही हैं

केएमएफ के अधिकारियों की चाहे जो भी दलीले हों, परंतु उत्तर भारत में भी आने वाले दिनों में दूध की कीमतों में 3 रुपये लीटर के अनुरूप इजाफा हो सकता है। क्योंकि, उत्तर भारत में चारे के साथ-साथ पशु आहार भी 25% तक महंगे हो गए हैं। इसका प्रत्यक्ष तौर पर प्रभाव दूध के उत्पादन पर पड़ रहा है। अब किसानों को दुधारू पशुओं के चारे पर अधिक धनराशि खर्च करनी पड़ रही है। अब ऐसी स्थिति में वे लागत निकाल कर डेयरी कंपनियों को महंगे भाव पर दूध बेच रहे हैं। यही वजह है, कि महंगी खरीद होने की वजह से डेयरी कंपनियां भी कीमतों में इजाफा कर सकती हैं।

किचन का बजट काफी प्रभावित होगा

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि लगभग प्रतिवर्ष दूध की कीमतों में बढ़ोतरी होती है। विशेष कर पिछले 12 साल में दूध के भाव 57 प्रतिशत बढ़े हैं। लेकिन, सबसे ज्यादा पिछले साल कीमतों में वृद्धि हुई है। साल 2022 में दूध की कीमतों में उछाल आने से 10 रुपये तक महंगा हो गया। इसके अलावा इस साल भी फरवरी माह में दूध की कीमतों में 3 रुपये का इजाफा हुआ। ऐसी स्थिति में लोगों को काफी डर सता रहा है, कि नंदिनी को देखकर कहीं बाकी कंपनियां भी दूध का रेट न बढ़ा दे। अगर ऐसा होता है, तो इस महंगाई में किचन का बजट बहुत ही ज्यादा डगमगा जाएगा।

दूध इस वजह से भी महंगा हो सकता है

आजकल पंजाब व हरियाणा समेत बहुत सारे राज्यों में बाढ़ की वजह से धान की फसल चौपट हो गई है, जिसका प्रत्यक्ष तौर पर प्रभाव आने वाले महीनों में चारे पर पड़ेगा। इसकी वजह यह है, कि धान की पराली का सबसे ज्यादा उपयोग चारे में तौर पर किया जाता है। साथ ही, दक्षिण भारत में औसत से काफी कम बारिश हुई है, जिससे धान के क्षेत्रफल में कमी आने की संभावना है। इसका प्रभाव भी मवेशियों के चारे पर पड़ेगा। ऐसी स्थिति में चारा हद से ज्यादा महंगा होने पर दूध की कीमतों में भी इजाफा देखने को मिलेगी है।